जारी है संकलन : "पतंग और पतंगा"
◆"पतंग" पर केंद्रित कविताएँ◆
1.
पतंग : आलोक धन्वा
(एक)
उनके रक्तो से ही फूटते हैं पतंग के धागे
और
हवा की विशाल धाराओं तक उठते चले जाते हैं
जन्म से ही कपास वे अपने साथ लाते हैं
धूप गरुड़ की तरह बहुत ऊपर उड़ रही हो या
फल की तरह बहुत पास लटक रही हो-
हलचल से भरे नींबू की तरह समय हरदम उनकी जीभ
पर रस छोड़ता रहता है
तेज़ आँधी आती है और चली जाती है
तेज़ बारिश आती है और खो जाती है
तेज़ लू आती है और मिट जाती है
लेकिन वे लगातार इंतज़ार करते रहते हैं कि
कब सूरज कोमल हो कि कब सूरज कोमल हो कि
कब सूरज कोमल हो और खुले
कि कब दिन सरल हों
कि कब दिन इतने सरल हों
कि शुरू हो सके पतंग और धागों की इतनी नाज़ुक दुनिया
(दो)
सबसे काली रातें भादों की गयीं
सबसे काले मेघ भादों के गये
सबसे तेज़ बौछारें भादों की
मस्तूतलों को झुकाती, नगाड़ों को गुँजाती
डंका पीटती- तेज़ बौछारें
कुओं और तलाबों को झुलातीं
लालटेनों और मोमबत्तियों को बुझातीं
ऐसे अँधेरे में सिर्फ़ दादी ही सुनाती है तब
अपनी सबसे लंबी कहानियाँ
कड़कती हुई बिजली से तुरत-तुरत जगे उन बच्चोंह को
उन डरी हुई चिड़ियों को
जो बह रही झाड़ियो से उड़कर अभी-अभी आयी हैं
भीगे हुए परों और भीगी हुई चोंचों से टटोलते-टटोलते
उन्होंने किस तरह ढूँढ लिया दीवार में एक बड़ा सा सूखा छेद !
चिड़ियाँ बहुत दिनों तक जीवित रह सकती हैं-
अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें
बच्चेप बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं
अगर आप उन्हें मारना बंद कर दें
भूख से
महामारी से
बाढ़ से और गोलियों से मारते हैं आप उन्हें
बच्चों को मारने वाले आप लोग !
एक दिन पूरे संसार से बाहर निकाल दिये जायेंगे
बच्चों को मारने वाले शासकों !
सावधान !
एक दिन आपको बर्फ़ में फेंक दिया जायेगा
जहाँ आप लोग गलते हुए मरेंगे
और आपकी बंदूकें भी बर्फ़ में गल जायेंगी
(तीन)
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादों गया
सवेरा हुआ
ख़रगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ानेवाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके-
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला काग़ज़ उड़ सके-
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
छतों के खतरनाक किनारों तक-
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वीन और भी तेज़ घूमती हूई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
1976 , कविता संग्रह : "दुनिया रोज़ बनती है" से
आलोकधन्वा | ||||||||
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रचना : 14-01-2022
संपर्क ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत 221009 फोन 08429249326 ई-मेल corojivi@gmail.com |
"पतंगा" पर केंद्रित कविताएँ 1. एक पतंगा इस लोह-खम्भ से एक पतंगा उड़ता हुआ अभी-अभी टकराया है बुरीतरह कुछ देर तड़पा और शांत हो गया मुझे लगा शायद मर गया लेकिन नहीं, थोड़ी देर बाद उसमें हुई थोड़ी हलचल खाई अलटी-पलटी पँख फैलाए कोशिश की उड़ने की कई बार लुढ़का गश्त खाकर फिर उठा और उड़ा कुछ देर फिर उठा और उड़ा और कुछ दूर फिर उठा और और उड़ा अधिक देर अधिक दूर इस बार उठकर उड़ा तो निकल गया कहाँ-का-कहाँ पता नहीं कुछ देर बाद उड़कर आए लोह-खम्भ के आसपास कुछ वैसे ही पतंगें कुछ लटके और कुछ जा बैठे लोह-खम्भ के शिखर पर और नोंचने लगे पाँवों से खम्भ का लोहा शिनाख़्त बहुत मुश्किल है, कि इनमें तो शामिल नहीं मौत से टकराकर जीना सीखा है जिसने अभी-अभी एक पतंगा ! -वसंत सकरगाए- 23/02/2021 *कवि परिचय : संक्षेप में* कवि वसंत सकरगाए 2 फरवरी 1960 को हरसूद(अब जलमग्न) जिला खंडवा मध्यप्रदेश में जन्म। म.प्र. साहित्य अकादमी का दुष्यंत कुमार,मप्र साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी सम्मान,शिवना प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय कविता सम्मान तथा अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्यिक पत्रकारिता के लिए ‘संवादश्री सम्मान। -बाल कविता-‘धूप की संदूक’ केरल राज्य के माध्यमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल। -दूसरे कविता-संग्रह ‘पखेरु जानते हैं’ की कविता-‘एक संदर्भ:भोपाल गैसकांड’ जैन संभाव्य विश्विलालय द्वारा स्नातक पाठ्यक्रम हेतु वर्ष 2020-24 चयनित।दो कविता-संग्रह-‘निगहबानी में फूल’ और ‘पखेरु जानते हैं’ संपर्क-ए/5 कमला नगर (कोटरा सुल्तानाबाद) भोपाल-462003 कवि : स्वप्निल श्रीवास्तव पूर्वी उ प्र के जनपद सिद्धार्थनगर के एक गांव में 05 अक्टूबर 1954 को जन्म । शुरुवाती शिक्षा गांव में हुई । हाई स्कूल इंटर जनपद कुशीनगर के एक कस्बे में । गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम ए के साथ यल यल बी । उ प्र सरकार में एक अधिकारी के रूप में राज्य के अनेक जनपदों में तैनाती । कवि के साथ कहानी लेखन । कविता संग्रह ईश्वर एक लाठी है , ताख पर दियासलाई , मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिए , जिंदगी का मुकदमा ,जब तक है जीवन कहानी संग्रह एक पवित्र नगर की दास्तान , स्तूप और महावत संस्मरणों की किताब - जैसा मैंने जीवन देखा । कविता के लिए , भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार के साथ फ़िराक सम्मान , केदार सम्मान , शमशेर सम्मान । तथा रूस का अंतराराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान । कविताओं के अनुवाद रूसी नेपाली , बंगाली , मराठी ,पंजाबी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में । फिलहाल सेवानिवृत्त के बाद फैज़ाबाद में स्थायी निवास । सम्पर्क -510 -अवधपुरी कालोनी , अमानीगंज फैज़ाबाद -224001 मोबाइल - 9415332326 ◆कविता◆ पतंग उड़ाते बच्चे : स्वप्निल श्रीवास्तव टेलिफ़ोन के तारों के बीच फँसी हुई है पतंग बच्चे डोर का आख़िरी सिरा खोज रहे हैं वे उसे उड़ाएंगे नए आकाश में पतंग बच्चों के हाथ में है जिससे वे छुएंगे आकाश और विद्युत की कंपन महसूस करेंगे अपने शरीरों में बच्चों के शरीरों में आएगी स्फूर्ति वे दौड़ेंगे-- इस छत से उस छत पतंग के साथ छत पर तमाम बच्चे हैं आकाश में तमाम पतंगें माता-पिता मना करते हैं बच्चों को बच्चे परवाह नहीं करते वे जोख़िम उठाने के लिए रहते हैं हर वक़्त तैयार पतंग उड़ाते हुए वे नहीं सोचते कि उनके पीछे कहाँ ख़त्म हो रही है छत या ज़मीन पर कहाँ है अन्धा कुँआ उनकी आँखों में है नीला आकाश आकाश में तैरती हुई पतंगें पतंगें-- जैसे ग्लास-टैंक में तैर रही हों रंग-बिरंगी मछलियाँ पतंग उड़ाते बच्चे आकाश को भेजते हैं संदेश कि वे आकाश को जीतने आ रहे हैं (साभार- कविता कोश) ■■■■■■■■■ ★ संपादक संपर्क सूत्र :- नाम : गोलेन्द्र पटेल {काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र} ह्वाट्सएप नं. : 8429249326 ईमेल : corojivi@gmail.com ■ यूट्यूब चैनल लिंक :- https://youtube.com/c/GolendraGyan ■ फेसबुक पेज़ :- https://www.facebook.com/golendrapatelkavi ◆ अहिंदी भाषी साथियों के इस ब्लॉग पर आपका सादर स्वागत है। ◆ संकलन कर्ता : आलोचक अर्जुन◆
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