सीमांकन यादव
हाशिये पार की संवेदना
हमारे देश में संवेदना
केन्द्र में नहीं वरन्
हाशिये पर है,
जोकि आवश्यकता पड़ने पर आती है केन्द्र में-अस्थाई तौर पर꫰
तबकि जब लुट चुकी होती है
किसी स्त्री की अस्मिता,
याकि हो जाती है निर्मम हत्या꫰
अन्ततः फिर लौटने लगती है संवेदना
हाशिये पर!
ठहरिये हुज़ूर! कुर्ता झाड़ लीजिए
हाँ कपासी कुर्ता,जो आता है किसानी खेत से,
छप्पन भोग खाते जाइये
हाँ गन्ना-अन्न-सब्जी से बना छप्पन भोग,जो आता है किसानी खेत से,
ग़ौर फ़रमायेंगे तो पायेंगे
कि आप चलते हैं किसानी खेत से,
लेकिन आज किसान खेत की मेड़ पर नहीं,
बैठा है लम्बे अरसे से अधखुले वितान तले
प्राचीरों के शहर में,आपकी तरफ टकटकी बाँधे꫰
आप कुछ नहीं कहना चाहते हुज़ूर?
कोई बात नहीं,मैं कहता हूँ आपकी चुप्पी को -'हाशिये पार की संवेदना',
जो कभी नहीं आती केन्द्र में꫰
2.
सरकारी बसंत
सुना है बसंत चल रहा है!
लेकिन, कहाँ?
किसान के खेतों में?
या बेरोज़गार हाथों में?
या महँगाई की दुनिया में?
या ये कहें कि बसंत का निजीकरण हो गया है,
अब वह चल रहा है सरकारी आदेश में,
पूँजीपतियों के इशारे पर!
- सीमांकन यादव
मो.न.- 6387482349
(रायबरेली,उत्तर प्रदेश)
परास्नातक,प्रथम वर्ष(हिन्दी)
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय꫰
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शुक्रिया गोलेन्द्र भाई!
ReplyDeleteशुक्रिया गोलेन्द्र भाई!
ReplyDeleteअभिराम🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर 🙏
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