Saturday, 20 February 2021

मीरा के गुरु : सद्गुरु संत शिरोमणि रविदास(रैदास) | जयंती स्पेशल

 


मीरा के गुरु : सद्गुरु संत शिरोमणि रविदास(रैदास) 644 वां जयंती स्पेशल 2021 :- 27 फरवरी , शनिवार

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुरु रविदास जयंती, माघ महीने में पूर्णिमा (माघ पूर्णिमा) के दिन पर मनाया जाने वाला गुरु रविदास का जन्मदिवस है। संत रविदास जयंती शनिवार को हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। रविदास के जन्म को रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। जातिवाद और आध्यात्मिकता के खिलाफ काम करने के कारण रविदास पूजनीय हैं।वह एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे। काशी के सीर गोवर्धनपुर गाँव में जन्मे रविदास (रैदास) का समय 1482-1527 ई. के बीच हुआ माना जाता है। एक लोक मत के अनुसार , उनकी माता का नाम श्रीमति कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास जी था। सर्वमान्य मत निम्नलिखित है :-

"चौदह से तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।"

पूरा नाम : संत रविदास
अन्य नाम : रामदास , गुरु रविदास , संत रैदास
जन्म : १३९८ ई. (लगभग)
जन्म भूमि : काशी , उत्तर प्रदेश
मृत्यु : १५१८ ई.
अभिभावक : रग्घु और घुरविनिया
पत्नी : लोना
कर्म भूमि : काशी
कर्म-क्षेत्र : कवि
विशेष योगदान : समाज सुधारक
नागरिकता : भारतीय
प्रसिद्ध वाक्य : मन चंगा तो कठौती में गंगा
रचनाएँ : 'रविदास के पद', 'नारद भक्ति सूत्र' और 'रविदास की बानी' 

एक पौराणिक कथा के अनुसार, रविदास जी पिछले जन्म में एक ब्राह्मण थे। अपनी मृत्युसैया पर वह चमार जाति की एक महिला की ओर आकर्षित हो गये, और उन्होंने उस खूबसूरत महिला को अपनी माँ बनने की कामना की। मृत्यु के बाद, उन्होंने उसी स्त्री के गर्भ से रविदास जी के रूप में पुनर्जन्म लिया। वे कबीर जी के समकालीन थे, और अध्यात्म पर कबीर जी के साथ कई संवाद उपलब्ध हैं।

बचपन से ही रविदास साधु प्रकृति के थे और ये संतों की बड़ी सेवा करते थे। इस कारण इनके पिता रघु इन पर अक्सर नाराज हो जाते थे। इनकी संत-सेवा में सब कुछ अर्पित कर देने की प्रवृत्ति से क्रुद्ध होकर इनके पिता ने इन्हें घर से बाहर कर दिया और खर्च के लिए एक पैसा भी नहीं दिया। फिर भी रविदास साधुसेवी बने रहे. ये बडे अलमस्त-फक्कड़ थे। संसार के विषयों के प्रति इनमें जरा भी आसक्ति नहीं थी। ये अपनी गृहस्थी जूता-चप्पल बनाकर अत्यंत परिश्रम के साथ चलाते थे। इनकी पत्‍‌नी भी सती-साध्वी थीं।

भारत संतों की भूमि है। यहां समय-समय पर संतों और ज्ञानियों ने अपने ज्ञान से समाज में विकास की रफ्तार को मजबूत किया और एकता का प्रचार किया है। लेकिन संत बनना भी कोई आसान काम नहीं। इच्छाओं का अंत हो जाने पर ही मनुष्य संत की श्रेणी में आ सकता है।

संत रैदास के 40 सबद गुरूग्रंथ में : 


संत रविदास ने सभी को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने की सीख दी। संत रविदास के 40 सबद गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। जिसका सम्पादन गुरु अर्जुन सिंह देव ने १६ वीं सदी में किया था । उनकी एक कहावत ‘जो मन चंगा तो कठौती में गंगा' काफी प्रचलित है। इस कहावत को जोड़कर एक कथा भी है। कहते हैं कि एक बार एक महिला संत रविदास के पास से गुजर रही थी। संत रविदास लोगों के जूते सिलते हुए भगवान का भजन करने में मस्त थे।

रविदास जी कैसे बने संत

एक कथा के अनुसार रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। एक दिन खेलने के बाद अगले दिन वो साथी नहीं आता है तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने चले जाते हैं, लेकिन उन्हे पता चलता है कि उसकी मृत्यु हो गई। ये देखकर रविदास जी बहुत दुखी होते हैं और अपने मित्र को बोलते हैं कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत रविदास जी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया उन्होंने अपनी शक्ति भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वो संत बन गए। सामाजिक जीवन में जाति व्यवस्था के अनुसार, नीची जाति में जन्मे रविदास जी के विचारों के वजह से पूरे भारत में उनके अनुयायी हैं



मीरा के गुरु थे संत रविदास-
संत रविदास भगवान कृष्ण की परमभक्त मीराबाई के गुरु थे। मीराबाई उनकी भक्ति भावना से प्रभावित होकर उनकी शिष्या बन गई। संत रविदास का मानना था कि अभिमान और बड़प्पन का भाव त्यागकर विनम्रतापूर्वक व्यवहार करने वाला व्यक्ति ही ईश्वर का भक्त हो सकता है। संत रविदास जी ने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी।

मीराबाई ने स्वयं अपने पदों में बार-बार रविदास जी को अपना गुरु बताया है।

“खोज फिरूं खोज वा घर को, कोई न करत बखानी।
सतगुरु संत मिले रैदासा, दीन्ही सुरत सहदानी।।
वन पर्वत तीरथ देवालय, ढूंढा चहूं दिशि दौर।
मीरा श्री रैदास शरण बिन, भगवान और न ठौर।।
मीरा म्हाने संत है, मैं सन्ता री दास।
चेतन सता सेन ये, दासत गुरु रैदास।।
मीरा सतगुरु देव की, कर बंदना आस।
जिन चेतन आतम कह्या, धन भगवान रैदास।।
गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुर से कलम भिड़ी।
सतगुरु सैन दई जब आके, ज्याति से ज्योत मिलि।।
मेरे तो गिरीधर गोपाल दूसरा न कोय।
गुरु हमारे रैदास जी सरनन चित सोय।।”


मन चंगा तो कठौती में गंगा

संत रविदास की अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता इस उदाहरण से समझी जा सकती है एक बार की बात है कि रविदास अपने काम में लीन थे कि उनसे किसी ने गंगा स्नान के लिए साथ चलने का आग्रह किया। संत जी ने कहा कि मुझे किसी को जूते बनाकर देने हैं यदि आपके साथ चला तो समय पर काम पूरा नहीं होगा और मेरा वचन झूठा पड़ जाएगा। और फिर मन सच्चा हो तो कठौती में भी गंगा होती है आप ही जाएं मुझे फुर्सत नहीं। यहीं से यह कहावत जन्मी मन चंगा तो कठौती में गंगा।

सामाजिक भेदभाव का विरोध

संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने का प्रयास भी किया। सही मायनों में देखा जाए तो मानवतावादी मूल्यों की नींव संत रविदास ने रखी। वे समाज में फैली जातिगत ऊंच-नीच के धुर विरोधी थे और कहते थे कि सभी एक ईश्वर की संतान हैं जन्म से कोई भी जात लेकर पैदा नहीं होता। इतना ही नहीं वे एक ऐसे समाज की कल्पना भी करते हैं जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव नहीं हो।


ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण : संत रविदास जी ने अपनी वाणी से हमेशा धर्म और जाति के नाम पर होने वाली असमानता को मिटाने की कोशिश की है। वैसे आज के समय में दूसरी जाति के लोगों के साथ असमानता में कमी तो आई है लेकिन स्थिति अब भी संतोषजनक नहीं है। ऐसे में रविदास जी का ये दोहा लोगों को जरूर समझना चाहिए। इस दोहे में उन्होंने कहा है कि मनुष्य की पहचान उसकी जाति से नहीं बल्कि उसके कर्म से होती है।


क्रोध करने से बनते काम भी बिगड़ जाते हैं: आज के समय में गुस्सा लोगों के नाक पर ही बैठा रहता है। ऐसे में रविदास जी का ये दोहा आपको बहुत कुछ सिखा सकता है। रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम, सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम। इस दोहे में संत रविदास भक्ति की शक्ति का वर्णन करते हैं। उनके अनुसार जिस हृदय में दिन-रात बस राम के नाम का ही वास रहता है, ऐसा भक्त स्वयं राम के समान हो ता है। राम नाम की ऐसी माया है कि इसे दिन-रात जपने वाले लोगों को न तो स्वयं गुस्सा आता है और न ही दूसरों के गुस्से से वो विचलित होते हैं।

रविदास साधु प्रकृति के होने के अलावा समाज के लिए भी बेहद सतर्क रहते थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।

इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग था, जिसका मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ता है।'रविदास के पद', 'नारद भक्ति सूत्र' और 'रविदास की बानी' उनके प्रमुख संग्रह हैं।


संत रविदास जी के प्रमुख दोहे-
-जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात 
-मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊ सहज सरूप  
-करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की न तज्जियो आस, कर्म मानुष का धर्म है सत् भाखै रविदास  
-अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी  
-हरि सा हीरा छांड के, करै आन की आस

ऐसा चाहू राज मैं, मिले सभी को अन्न।
छोटे-बड़े समबसे, रैदास रहे प्रसन्न॥

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी / रैदास


प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै 'रैदासा॥

राम बिन संसै गाँठि न छूटै / रैदास

राम बिन संसै गाँठि न छूटै।
कांम क्रोध मोह मद माया, इन पंचन मिलि लूटै।। टेक।।
हम बड़ कवि कुलीन हम पंडित, हम जोगी संन्यासी।
ग्यांनी गुनीं सूर हम दाता, यहु मति कदे न नासी।।१।।
पढ़ें गुनें कछू संमझि न परई, जौ लौ अनभै भाव न दरसै।
लोहा हरन होइ धँू कैसें, जो पारस नहीं परसै।।२।।
कहै रैदास और असमझसि, भूलि परै भ्रम भोरे।
एक अधार नांम नरहरि कौ, जीवनि प्रांन धन मोरै।।३।।

हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे / रैदास

।। राग आसा।।
  
हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे।
हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे।। टेक।।
हरि के नाम कबीर उजागर। जनम जनम के काटे कागर।।१।।
निमत नामदेउ दूधु पीआइया। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ।।२।।
जनम रविदास राम रंगि राता। इउ गुर परसादि नरक नहीं जाता।।३।।

पांडे कैसी पूज रची रे / रैदास

।। राग सोरठी।।
  
पांडे कैसी पूज रची रे।
सति बोलै सोई सतिबादी, झूठी बात बची रे।। टेक।।
जो अबिनासी सबका करता, ब्यापि रह्यौ सब ठौर रे।
पंच तत जिनि कीया पसारा, सो यौ ही किधौं और रे।।१।।
तू ज कहत है यौ ही करता, या कौं मनिख करै रे।
तारण सकति सहीजे यामैं, तौ आपण क्यूँ न तिरै रे।।२।।
अहीं भरोसै सब जग बूझा, सुंणि पंडित की बात रे।।
याकै दरसि कौंण गुण छूटा, सब जग आया जात रे।।३।।
याकी सेव सूल नहीं भाजै, कटै न संसै पास रे।
सौचि बिचारि देखिया मूरति, यौं छाड़ौ रैदास रे।।४।।

नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर / रैदास

।। राग विलावल।।
  
नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर।
जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।।
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।१।।
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।२।।
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।३।।
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।४।।

त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन / रैदास

।। राग धनाश्री।।
  
त्राहि त्राहि त्रिभवन पति पावन।
अतिसै सूल सकल बलि जांवन।। टेक।।
कांम क्रोध लंपट मन मोर, कैसैं भजन करौं रांम तोर।।१।।
विषम विष्याधि बिहंडनकारी, असरन सरन सरन भौ हारी।।२।।
देव देव दरबार दुवारै, रांम रांम रैदास पुकारै।।३।।

जग मैं बेद बैद मांनी जें / रैदास


।। राग सारंग।।
  
जग मैं बेद बैद मांनी जें।
इनमैं और अंगद कछु औरे, कहौ कवन परिकीजै।। टेक।।
भौ जल ब्याधि असाधिअ प्रबल अति, परम पंथ न गही जै।
पढ़ैं गुनैं कछू समझि न परई, अनभै पद न लही जै।।१।।
चखि बिहूंन कतार चलत हैं, तिनहूँ अंस भुज दीजै।
कहै रैदास बमेक तत बिन, सब मिलि नरक परी जै।।२।।

माया मोहिला कान्ह / रैदास


।। राग कानड़ा।।
  
माया मोहिला कान्ह।
मैं जन सेवग तोरा।। टेक।।
संसार परपंच मैं ब्याकुल परंमांनंदा।
त्राहि त्राहि अनाथ नाथ गोब्यंदा।।१।।
रैदास बिनवैं कर जोरी।
अबिगत नाथ कवन गति मोरी।।२।।

राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ / रैदास

राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊँ ॥टेक॥

थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥१॥

मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
विष अमृत दोउ एक संगा ॥२॥

मन ही पूजा मन ही धूप ।
मन ही सेऊँ सहज सरूप ॥३॥

पूजा अरचा न जानूँ तेरी ।
कह रैदास कवन गति मोरी ॥४॥

सो कत जानै पीर पराई / रैदास

।। राग सूही।।
  
सो कत जानै पीर पराई।
जाकै अंतरि दरदु न पाई।। टेक।।
सह की सार सुहागनी जानै। तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै।
तनु मनु देइ न अंतरु राखै। अवरा देखि न सुनै अभाखै।।१।।
दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी। जिनि नाह निरंतहि भगति न कीनी।
पुरसलात का पंथु दुहेला। संग न साथी गवनु इकेला।।२।।
दुखीआ दरदवंदु दरि आइआ। बहुतु पिआस जबाबु न पाइआ।
कहि रविदास सरनि प्रभु तेरी। जिय जानहु तिउ करु गति मेरी।।३।।

मेरी प्रीति गोपाल सूँ जिनि घटै हो / रैदास

।। राग धनाश्री।।
  
मेरी प्रीति गोपाल सूँ जिनि घटै हो।
मैं मोलि महँगी लई तन सटै हो।। टेक।।
हिरदै सुमिरंन करौं नैन आलोकनां, श्रवनां हरि कथा पूरि राखूँ।
मन मधुकर करौ, चरणां चित धरौं, रांम रसांइन रसना चाखूँ।।१।।
साध संगति बिनां भाव नहीं उपजै, भाव बिन भगति क्यूँ होइ तेरी।
बंदत रैदास रघुनाथ सुणि बीनती, गुर प्रसादि क्रिया करौ मेरी।।२।।

ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं / रैदास


।। राग आसा।।
  
ऐसी मेरी जाति भिख्यात चमारं।
हिरदै राम गौब्यंद गुन सारं।। टेक।।
सुरसुरी जल लीया क्रित बारूणी रे, जैसे संत जन करता नहीं पांन।
सुरा अपवित्र नित गंग जल मांनियै, सुरसुरी मिलत नहीं होत आंन।।१।।
ततकरा अपवित्र करि मांनियैं, जैसें कागदगर करत बिचारं।
भगत भगवंत जब ऊपरैं लेखियैं, तब पूजियै करि नमसकारं।।२।।
अनेक अधम जीव नांम गुण उधरे, पतित पांवन भये परसि सारं।
भणत रैदास ररंकार गुण गावतां, संत साधू भये सहजि पारं।।३।।

आज दिवस लेऊँ बलिहारा / रैदास

आज दिवस लेऊँ बलिहारा ।
मेरे घर आया रामका प्यारा ॥टेक॥

आँगन बँगला भवन भयो पावन ।
हरिजन बैठे हरिजस गावन ॥१॥

करूँ डंडवत चरन पखारूँ ।
तन-मन-धन उन उपरि वारूँ ॥२॥

कथा कहै अरु अरथ बिचारैं ।
आप तरैं औरन को तारैं ॥३॥

कह रैदास मिलैं निज दासा ।
जनम जनमकै काटैं पासा ॥४॥


निष्कर्षतः :-
असल में संत रविदास को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब इस भारत भूमि पर सभी वर्णों, जातियों, समाजों और वर्गों के लोग एक मार्ग पर चलें। रविदास जी के संदेश आज भी हमें समाज कल्याण का मार्ग दिखाते है। संत रविदास ने अपने जीवन के व्यवहार से यह प्रमाणित किया है कि इंसान चाहे किसी भी कुल में जन्म ले लेकिन वह अपनी जाति और जन्म के आधार पर कभी महान नहीं बनता है। इंसान महान तब बनता है जब वह दूसरों के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव रखते हुए समाज के प्रति अपना जीवन न्योछावर कर दे।

2022 , 2023 ,2024 में रविदास जयंती :-
माघ शुक्ल पूर्णिमा की तिथि अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार गुरु रविदास की 645वाँ जन्म वर्षगाँठ 16 फरवरी 2022 ,बुधवार को है इसलिये इसी दिन गुरु रविदास जी का 645 वाँ जन्म वर्षगाँठ मनाया जाएगा , 646वाँ जन्म वर्षगाँठ 5 फरवरी 2023 रविवार को और 647 वाँ जन्म वर्षगाँठ 24 फरवरी 2024 ,शनिवार को मनाया जाएगा।

©गोलेन्द्र पटेल


संदर्भ :-

1.गूगल 

2. विकिपीडिया

3. भिन्न भिन्न ई-न्यूज़पेपर एवं ई-पत्र-पत्रिकाएं

4. सलेब्स बुक

5. एवं अन्य।


नोट :- उपर्युक्त लेख कोई स्वतंत्र लेख न हो कर ; संकलन है जिसे आप नोट्स की तरह पढ़ सकते हैं।



★ संपादक संपर्क सूत्र :-

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र}

ह्वाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


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