आदिवासी क्यों प्रतिरोध करता है?
..........................................
अगर कोई यह कहता है
कि आदिवासी इस देश में सिर्फ़ प्रतिरोध करता है
तो हां वह प्रतिरोध करता है
इसलिए नहीं कि प्रतिरोध करना उसकी आदत है
इसलिए कि उसका हक जो छीन लिया गया
इसी देश के विकास के नाम पर
उस देश में वह सिर्फ़ अपना हिस्सा चाहता है
ज्यादा कुछ नहीं मांगता है
आदिवासी इस देश से कुछ पूछता है
इसलिए नहीं कि उसे सिर्फ़ सवाल पूछना आता है
इसलिए कि सिर्फ़ उसी से कोई नहीं पूछता
कि वह क्या चाहता है
अब अगर यह देश समझता है
कि आदिवासी इस देश का विकास नहीं चाहता
इसलिए प्रतिरोध करता है
सत्ता के खिलाफ रहता है
तो यह समझना चाहिए
कि यह देश अपने लोगों को
सीधे-सीधे और साफ़-साफ़ यह नहीं बताता
कि विध्वंश को विकास बताने वाला यह देश
शाकाहार बचाए रखने वाला यह देश
पेड़ और पशु की पूजा करने वाला यह देश
जब आदिवासियों की बली चढ़ाने आता है
उनको जिबह करने से ठीक पहले
खुद जबरन अंधा और बहरा बन जाता है
ताकि उसे किसी की आवाज़ सुनाई ना दे
बोलता हुआ कोई आदिवासी दिखाई ना दे
ऐसे अंधे और बहरे देश में
ऐसे नरभक्षी देश में
अगर कोई आदिवासी
अपने जीवित रहने के हक के लिए लड़ता है
तो क्या ग़लत करता है ?
११.
दुनिया बदलने का सपना दिखाते लोग
..............................................
जो दुनिया को बदलना चाहते थे
वे जंगल में छिपने आए
वे छिपने आए, सीखने नहीं आए
वे भी आदिवासी दुनिया को समझ नहीं सके
उनको ठोक-ठाक कर कुछ बनाने लगे
आदिवासी कुछ बन तो नहीं सके
पर उनके लिए ढाल ज़रूर बन गए
अब ढाल ही गोली खाता है, पीटा जाता है
और इस बारे कुछ भी बोलता है
तो जंगल के भीतर और बाहर
दोनों जगह मारा जाता है
आदिवासी जो जंगल से भाग जाते हैं
एक दिन फिर लौट आते हैं
लौट कर उजड़ा घर फिर से सजाते हैं
बचा जंगल ही फिर से बचाते हैं
बोलने की जगह गीत गाते हैं
काम को करने की जगह उसे जीते हैं
और खुद के बचे रहने के लिए
पूरी ताक़त के साथ लड़ते हैं, मरते हैं
पर उन्हें कुछ ना कुछ सिखाते रहने
कुछ ना कुछ बताते रहने
दुनिया बदलने के सपने दिखाते रहने
और कुछ सीखने से खुद को बचाते लोग
जब भी इधर आते हैं
सबसे पहले उनकी ही दुनिया
उजाड़ने के सिवा और क्या कर पाते हैं ?
१२.
जीत
.........
झूठ और बेईमानी का सहारा लेते हुए
अपनी पूरी ताक़त लगाकर
कुछ लोग प्रतियोगिता जीत भी जाएं
तो भी उस जीत का कोई क्या करे?
जब प्रतियोगिता ही
सबसे पहले धरती की क़ब्र खोदने की हो।।
१३.
चांद पर यक़ीन करते लोग
.................................
दुनिया भर के लोग
जो एक दूसरे को ठीक से नहीं जानते
अपनी-अपनी छत से एक दिन
एक साथ चांद देखते हैं
और उस चांद पर यक़ीन करते हैं
पर यक़ीन नहीं कर पाते तो उसपर
जो दिन-रात उनके ही आस-पास रहता है
और छत पर आकर आवाज़ भर देने से
जो दौड़ कर बाहर आ सकता है
इस धरती पर लोग
क्यों चांद पर भरोसा करते हैं?
जो किसी के लिए भी कभी
ज़मीन पर नहीं उतर सकता है
पर उस पर भरोसा नहीं कर पाते
जो पीढ़ियों से पड़ोस में रहता है ।।
१४.
जब कोई कवि वरवर राव होना चाहे
............................................
एक कवि जो जेल नहीं जा सका
उसे सिर्फ़ वरवर राव हो जाने के लिए
जेल जाने के सपने क्यों देखना चाहिए ?
और किसी कवि वरवर राव को हमेशा
किसी जेल में क्यों होने देना चाहिए?
कवि ईट-पत्थर के बने जेल में होगा
फिर जीवन के जेल में
कैद लोगों की बात कौन करेगा?
कोई कवि जब भी वरवर राव हो जाना चाहेगा
वह इधर ही ज़मीन पर
जीवन के जेल में कैद
हज़ारों लोगों की मुक्ति की बात कहेगा
पर कोई कवि इधर भी
हमेशा अपने ही जेल में रहे
वह उधर जेल में रहकर भला क्या करेगा ?
सिर्फ़ कविता करेगा, कवि रहेगा
वह कोई वरवर राव कभी न हो सकेगा ।।
१५.
शहर की भाषा
.....................
मां-बाबा जंगल से जब शहर आए
उनके पास अपनी आदिवासी भाषा थी
जीभ से ज्यादा जो आंख की कोर में रहती थी
पानी की तरह
कोई भी पढ़ सकता था उनका चेहरा
पर इस शहर ने
शहर की भाषा नहीं जानने पर
जंगली कहा
उनका मज़ाक उड़ाया, उन्हें नीचा दिखाया
एक दिन हम बड़े हुए
मां-बाबा ने गांव की भाषा छिपा ली
और शहर में जिंदा रहने के लिए
हमें सिर्फ़ शहर की भाषा दी
पर इस शहर ने फिर
अपनी मातृभाषा नहीं जानने पर
हमारा मज़ाक उड़ाया, हमें नीचा दिखाया
एक दिन हमने जाना
दरअसल बात यह नहीं है कि
हम क्या जानते और क्या नहीं जानते हैं
असल बात यह है
कि इस शहर को एक ही भाषा आती है
अपने से भिन्न हर मनुष्य को
हमेशा नीचा दिखाने की भाषा
आज हम दुनिया की तमाम भाषाओं में
कहना चाहते हैं अपनी बात
पर संदेह है कि यह शहर समझता है
अपने से भिन्न किसी भी भाषा की बात ।।
काशी की कोरोजयी कवयित्री अंकिता खत्री ( अंकिता "नादान" ) की कोरोजीवी कविताएं :-
१.
चलने लगती हैं हवाएं
छाने लगती हैं घटाएं
हर शय चहकने लगती है
महकने लगती हैं फिजाएं
अरमां जाते हैं मचल, आह जाती है निकल
जब वो गाते हैं "चल मेरे साथ ही चल...
ए मेरी जान - ए - ग़ज़ल"
उनकी हर सांस तरन्नुम, हर लफ्ज़ है तराना
वो सुरों में बह चलें तो बना देते हैं अफ़साना
असर ऐसा जैसे हो जादू-सा कोई
अंदाज़े बयां तो जां निकाल देता है
खुशबू उनके किरदार की है ऐसे रौशन
हर सुर इक रूहानी ख्याल देता है
आ रहें हैं बन के मेहमां हमारे
करने महफ़िल हमारी आबाद
हुसैन बंधुओं की शां में सर झुका के
तहे दिल से हम करते हैं आदाब...
२.
चोट खाई थी दिल पे
क्यों ज़ख्म कुरेदे जा रहे हो
बड़े "नादान" हो
फिर प्यार करने जा रहे हो
धोखा मिला था अभी
नया वादा निभाने जा रहे हो
बड़े "नादान" हो
फिर ऐतबार करने जा रहे हो
छोड़ गया वो मोड़ पर
किसकी राह निहारे जा रहे हो
बड़े "नादान" हो
फिर इंतज़ार करने जा रहे हो
मुश्किल से संभले थे
जल्द बेताब हुए जा रहे हो
बड़े "नादान" हो
फिर इज़हार करने जा रहे हो
३.
बेवफ़ा की फ़ितरत है बदल जाना
जो कभी हमारा था अब तुम्हारा ना रहा...
जबसे छोड़ गया वो मेरे मोहल्ले का घर
छत पर कटी पतंग लूटने का बहाना ना रहा...
इंतज़ार करते थे इश्क़ में सदियों तलक
ना वो दीवाने ही रहे अब वो ज़माना ना रहा...
उसके नूर की रौशनी की चाहत सबको
जल जाए उसकी ख़ातिर वो परवाना ना रहा...
दौलत और ताकत का नशा चढ़ा जिनको
फ़कीरी में क्या है सुरूर उन्हें कभी पता ना रहा...
कोई शिकवा गिला शिकायत नही बाकी
मिला जब मुझे ये जहाँ मैं इस जहाँ का ना रहा...
डूब ही जाते बीच भंवर में तो अच्छा था
मिलता था जिससे सहारा वो किनारा ना रहा...
इस मुल्क की चिंता सता रही उन्हें 'नादान'
जिस मुल्क की बेहतरी से कभी उनका वास्ता ना रहा...
४.
कच्चे करौंदे सा कड़क इश्क़ मेरा
तुम्हारी दीवानगी के छौंके से गलता है...
ज़रा सा जीरा तुम्हारे इरादों का
थोड़ा सा नमक झूठे वादों का
चुटकी भर हल्दी मर्यादा की
हरी मिर्च शोखी की ज़्यादा सी...
धीमी आंच में गले है
तेज़ कर दो तो जले है
देखो खुला ना छोड़ना
ढांक कर ही रखना...
धीरे धीरे करौंदे का हर रस बाहर आएगा
तुम्हारी मसालेदार बातों में लिपट जाएगा...
भांप बनकर खुशबू का धुआँ फैल जाएगा
क्या पक रहा है, सबको पता चल जायेगा...
चटक, चटपटा , झटपट बना
मेरे तुम्हारे प्यार का ये अचार
ज़िंदगी की सादी दाल रोटी में
स्वाद का चटकारा भरता है...
कच्चे करौंदे सा कड़क इश्क़ मेरा...
तुम्हारी दीवनगी के छौंके से गलता है...
५.
उसकी बातों के जादू से बाहर आऊँ कैसे
मैं मन को मनाऊँ , तो मनाऊँ कैसे...
उड़ चला है दिल दूर किसी और दुनिया में
मैं वापस बुलाऊँ , तो बुलाऊँ कैसे...
लाखों रंगों से रंगा सुहाने ख्वाबों का मंजर
मैं तुम्हे दिखाऊँ , तो दिखाऊँ कैसे...
बेताबियाँ पढ़ लो मेरी आँखों में झांककर
मैं खुद बताऊँ , तो बताऊं कैसे...
वो ठहरा निपट "नादान" रूठता भी नही
मैं उसे मनाऊँ , तो मनाऊँ कैसे...
६.
"मैं वापस आऊँगी..."
किसी डाली का फूल बन
तुम्हारा आंगन महकाऊंगी...
या फिर तितली बन शायद
उस फूल पर मंडराऊंगी...
मैं वापस आऊंगी...
बन जाऊंगी बारिश का पानी
बूंद-बूंद तुमपर बरसाऊंगी...
बैठूंगी किसी सीप के भीतर
मोती बन मुंदरी सजाऊंगी...
मैं वापस आऊंगी...
हवा का झोंका बन गई अगर
चुपके से पास तुम्हारे आऊंगी ...
जब रातों को करोगे याद मुझे
खुशबू जैसे सांसों में समाऊंगी...
मैं वापस आऊंगी...
सूरज की किरण बनकर
नया सवेरा कर जाऊंगी...
उदास शाम को गंगा किनारे
चांदनी बन बिखर जाऊंगी...
मैं वापस आऊंगी...
७.
मेरा हर दर्द हर्फ़ बन जाएगा
आह से निकलेगी काव्य की राह
तड़प सुलगयेगी नित नई रचनाएं
आंसू स्याही बन दास्तां लिख जाएंगे...
आंखों के नीचे का कालापन
सफ़ेद पन्नों पर काले अक्षरों जैसा
झुर्रियों की गहरी लकीरें लिए चेहरा
पोले गाल में भी awesome कहलायेंगे...
शायद कैनवास पर रंग बिखेरेंगे
कोई पुरानी फ़िल्म का गाना गाएंगे
dance number पर पांव थिरकेंगे
या बगिया में नए - नए फूल खिलाएंगे...
दौड़ नही सकें तो सहारा ले चलेंगे
बोल नही सकें तो इशारे से बतियाएंगे
जा नही सकेंगे महफिलों में तो क्या
अपनी यादों की ही महफ़िल सजायेंगे...
जो भी हो इतना तो तय है "नादान"
के ज़िंदगी! तेरे हर एक पल को
आज हो या आने वाला कल हो
दिल से जिया है और जीते जाएंगे...
८.
No comments:
Post a Comment